इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई की अहमियत

इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई की अहमियत

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता व पवित्रता का प्रभाव इनसान के दिल और दिमाग़ पर तो पड़ता ही है, इनसान और इनसानी समाज की सेहत व बेहतरी का भी इससे बड़ा गहरा सम्बन्ध है। सफ़ाई-सुथराई को हर इनसान फ़ितरी तौर पर पसन्द करता है, यह और बात है कि इसका तरीक़ा, मेयार और पैमाना लोगों की नज़र में अलग-अलग होता है। इस्लाम हमारे पैदा करने वाले पालनहार ख़ुदा की ओर से भेजे हुए मार्गदर्शन और हिदायत का नाम है, जिसमें इनसानों और इनसानी समाज के हर पहलू के लिए आदेश और निर्देश दिए गए हैं। इसी लिए सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता को सिर्फ़ इनसान की अपनी इच्छा और पसन्द पर नहीं छोड़ा गया है, बल्कि इसके बारे में भी बड़ी बारीकी और विस्तार के साथ ख़ुदा की किताब ‘पवित्र क़ुरआन' और ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के कथनों (हदीस) में निर्देश दिए गए हैं। फिर इन दोनों स्त्रोतों (क़ुरआन व हदीस) की रौशनी में इस्लामी आलिमों और धर्मशास्त्रियों (फ़ुक़हा) ने सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता के सम्बन्ध में हर पहलू से रहनुमाई की है। इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता की कितनी ज़्यादा अहमियत है, इसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस्लाम ने अपनी ज़्यादातर इबादतों और धार्मिक कामों को अदा करने के लिए सफ़ाई-सुथराई को लाज़िम कर दिया है, यानी पाक-साफ़ हुए बग़ैर ये इबादतें अदा ही नहीं की जा सकतीं। अगर कोई व्यक्ति पाकी और पवित्रता के बग़ैर इन्हें अंजाम देता है तो इस्लाम के अनुसार वे ख़ुदा के यहाँ क़बूल ही नहीं होंगी, बल्कि ऐसा आदमी उसका नाफ़रमान साबित होगा और गुनाहगार माना जाएगा और इस गुनाह की सज़ा उसे मरने के बाद की ज़िन्दगी (आख़िरत) में मिलेगी। सफ़ाई और पवित्रता के सम्बन्ध में इस्लाम की यह विशेषता है। इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि उसने केवल ऊपरी सफ़ाई-सुथराई पर ही ज़ोर नहीं दिया, बल्कि वास्तविक पवित्रता की अवधारणा (तसव्वुर) भी पेश की। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि इस्लाम ने सफ़ाई-सुथराई को पवित्रता प्रदान की है और हमें वास्तविक पवित्रता और उसकी रूह से अवगत कराया है।

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